पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५७८

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अम्मिला जब तक आसक्तता, ग्रीव में जब तक अह- रज्जु - फदा,- नृपति, तभी तक है इस जग में, पन-घट का सचय-धन्धा, 'भब भब, नाहम्-नाहम्' करता, जव भागेगा रीतापन,- अहो, उसी क्षण होगा जग मे राम-राज्य का सस्थापन, आज विभीषण-राज हो रहा राम-राज मगल - कारी, प्रकाश अज्ञान-तिमिर हारी । लका में फैला है घन वह अचेतना अहभाव की, धीरे-धीरे वह लालसा विकट सचय की आज भरपूर चूर-चूर हो गई, जगत मे, आक्रमणो की प्राशका, डका यह बज रहा मुक्ति का, पुण्य स्नाता है लका, शका, संशय, मोह, प्रलोभन, जन-धन-हरण - भाव भागे, त्यागै त्रेता ने कुभाव सब, उमके परम भाग जागे ।