पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५८०

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ऊम्मिला हो निमग्न आनन्द - उदधि मे, जग भर मे डोलो, विचरो, हो उन्मुक्त मलय-मारुत इव, जग मे प्रात्म-सुगन्ध भरो, अमृत-पुत्र हो तुम, मत भूलो, तुम अनन्त' -जीवन - स्वामी, नेक निहारो तुम अपनी छवि, हे जन, बन कर निष्कामी, देखो तो, यह जग क्षण भर में स्वर्ग लोक बन जायेगा, सब बाधाएँ दूर हटेगी, वह अपनापन पाएगा। मे प्रबला, इस सन्देश-प्रचार - मार्ग मे, बाधाएँ बडी - बडी, गगन चुम्बिनी पर्वत - माला- "पथ को रोके अचल खडी, सागर की उत्ताल तरगे, नाच रही पथ विकट शूल है, भीम शिलाएँ, विजन सघनता है सबला, वर्षा, आतप, शीत, भयकर, वन-पशुप्रो से पन्थ घिरा, सत्य-प्रचारक के पथ मे है बाधाओ का पुज निरा।