पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५८१

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षष्ठ सर्ग ? यही आधिभौतिक बाधाएं, अलम् नहीं है इस पथ की, और कई बाते पाती हे बाधा बनी प्रगति-रथ की, “गतानुगति-विश्वास-जनित यह, अन्य - अनुसरण - परम्परा- कुण्ठित करती आत्मवरण को, रूढि कब रही स्वयवरा जरठ- नवीन - भाव - सघर्षण---- जनित प्रचण्ड अनल-भय से, हृदय दूर हट जाता है, शिव-सुन्दर-सत्य-समुच्चय १०० मानव की मानवता क्या है ? कि वह आग से खेल करे ? नर है स्वय अग्नि-चिनगारी, क्यो न अग्नि से मेल करे ? सत्य-तपस्या पावक उद्भावक जग की, जन की, है मनुष्य आग्नेय कल्पना, अग्नि-पुज-विभु के मन की, फिर, विचार-सघर्ष अनल से, यह कैसी भय-भीति, कहो ? अग्नि-शिखा है अनल-सुतो की कल्मष-हर कुल-रीति, अहो ।