पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५८४

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कम्मिला अनिर्वचन क्षमता, १०५ कर्मों में कल्याण-कामना, निरलसता, थिरता, समता,- मन में जागरूकता, वचनो--- मे धर विश्व - मुक्ति - भावना हृदय मे, कर मे सत्-अवलम्बन-दण्ड प्रॉखो मे भविष्य का सपना, चरणो मे सत्-प्रगति अखण्ड, यदि विश्वास-भक्ति-श्रद्धा के पथ के पथिक धीर ऐसे,- सन्तत विचरे, तो फिर जग मे--- बहे न सत् - समीर कैसे ? जीवन है चिर विप्लव-गायन, स्वर जिसके है सन्तत-क्रान्ति, गीत-भार है नित-परिवर्तन, गायन-लय है चिर अश्रान्ति, अथकित,निरलस,सतत प्रगति यह गायन स्वर - आरोहण है, सत्य सनातन अनुभव-सचय, अवरोहण मन-मोहन ज्ञान विज्ञानान्वेषण है सुन्दर सम गायन का, गीत सिद्धि है यह, कि बने नर, पुण्य नारायण का ।