पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५८८

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ऊम्मिला ११३ हृदय अनेक यहाँ, गठित । चरण-वन्दना कर लकापति बोले यो गम्भीर गिरा "आर्य राम, है मेरे मन की- दशा प्राज अति अनस्थिरा, भावनाओ से आन्दोलित हो रहा इधर-उधर यह विचर रहा है ना जाने मन कहाँ-कहाँ, मेरी आँखो के आगे ही युग-परिवर्तन हुआ घटित, महा-नाश देखा है, दखा होते नव-निर्माण ११४ सहार कारिणी, देखी विकट राम - लीला देखी जग- निर्माण - कारिणी / राम-वृत्ति - पोषण - ला, महानाश का ताण्डव देखा, देखा जीवन रास, प्रभो । मारक भी, जीवनदायक भी, देखा भ्रकुटि-विलास, प्रभो, वज्रघोष भी सुना श्रवण से, दुन्दुभि - हर्ष - निनाद सुना, आर्य, विभीषण ने जीवन में बहुत-बहुत कुछ सुना-गुना । मैने जग ५७४