पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५९

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यह सुन सीता रूठ गई, कुछ होकर तनी-तनी-सी, कहने लगी अम्मिला से वह कुछ-कुछ रोष-सनी-सी, 'मुझसे कभी कहलवाना अब तुम कुछ नई कहानी-- तब में जानूंगी, हाँ, हो तुम नटखट और सयानी ।" १०६ देखो, मैं तुम में अब, जाओ, कभी नही बोलूंगी आज अकेली ही मैं सारे उपवन मे डोलूंगी, मा से कह दूंगी कि तुम्हारी छोटी बेटी प्यारी- खूब भूल जाती है कहकर निज की बाते सारी ।" १०७ "बात बात मे रूठ बैठना, तुम ने कब से सीखा ? मेरी जीजी बनी मानिनी मुझ को अब यह दीखा। तनिक-तनिक-सी बातो पर क्या मुझ से मुंह मोडोगी? अपनी बहिन अम्मिला को क्या जीजी, यो छोडोगी?" १०८ यह सुन सीता हँसकर उससे लिपट गई प्रमुदित हो- ज्यो गिरिजा से आ लिपटी हो नव शशि-कला उदित हो, फिर धीरे से बोली, “प्यारी बहिन ऊम्मिला मेरी,- कहो कहानी जल्दी से, क्यो लगा रही हो देरी ? १०६ देखो, मैंने तुम्हे सुनाई कैसी सुघर कहानी, अब तुम क्यो सकोच-जाल में बैठी हो अरुझानी ? मुह तो खोलो रच, करे हम-तुम बाते घुल-धुल के- कहो कहानी अपनी, फिर, हम चुने फूल मिल-जुलके ।