पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५९२

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कम्मिला विजय राम की पीछे आई, सीता की जय है पहले, यह है अमिट सत्य, फिर चाहे, यो कोई कुछ भी कह ले, पुण्य तुम्हारे दरस, न करते यदि उत्पन्न यहाँ मतभेद, तो न राम के लिए लक-जय हो सकती इतनी अस्वेद, सात्विकत्व, देवत्व और इन चरम सतीत्व-सुभावो ने-- लका को जीता है, माता, तव सत, शील स्वभावो ने! १२२ आर्य राम की यह जय तो है- केवल लोकाचार - क्रिया, वास्तव मे तो, मॉ, तुमने ही, का गढ क्षार किया, भस्म कर चुका था लका को तव ज्वलन्त अभिशाप-अनल, हनूमान का लक-दहन तो- खेल-प्रदर्शन था जनक सुते, श्रीराम वल्लभे, जगद्वन्द्य, तुम धन्य सती, पूर्ण हुए है, धन्य हुए है तुम्हे वरण कर राम यती । लका केवल, ५७८