पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५९६

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ऊम्मिला १२६ इसीलिए जग सदा रहेगा मम अग्रज का निपट कृतज्ञ, उनने प्रकृति-ज्ञान फैला कर, जग की हरी भावना अज्ञ, किन्तु हन्त | वह अथकान्वेषण, सीमोल्लघन कर न सका, प्रकृति-बद्ध हो गया परिश्रम, और एक डग भर न सका, 'भौतिकता के सचय मे पड, वह विज्ञान हुआ भू-भार, इसीलिए, हे आर्य, आपको, , करना पडा पयोनिधि पार । आर्य आपकी चरण-क्रिया से-- फैला आत्मज्ञान आलोक, यह सन्देश मिल गया जग को, चरम मोक्ष का पुण्यश्लोक, भौतिक-आत्मिक विज्ञानो का- हुआ समन्वय मगलमय, वे पदार्थ - सकलन - वृत्तियों है सर्वादय, छूटी प्राणो की वह फाँसी, टूटी रज्जु प्रलोभन की, नही रही अब राम-कृपा से प्राशका जन - दोहन की। मिटी, हुआ ५८२