पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६००

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अम्मिला राजस् - कर्मठता, तुम असफल थे प्रो गत युग, तुम- दारुण दुख थे, दाहक थे, तुम आकुचित थे, कुण्ठित थे, असद्भाव - सग्राहक पर तुम मोहक थे, तुम म थी निरलस् तुम मे दृढता थी, साहस था, बल था, अहभाव-हठ था, तुम मे, चरम वेदना भी थी, प्राशका, पीडा भी थी, पर, प्राणो से खेल खेलने..... की तुम मे क्रीडा भी थी। १३८ अब यह आया है नवीन युग, कैसा है ? क्या है इसमे ? नव-निर्माण, विश्व-मगल की, सचित आशा है इसमे, देकर अपने वक्षस्थल का, रजित, . गाढ, उष्ण शोणित, इस नवयुग को रामचद्र ने स्थापित किया, किया पोषित, आओ, नवयुग, उन्नत मस्तक-- हो हम स्वागत करते है, तेरे नव आदेशो को हम y शिर ऑखो पर धरते है ।