पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६०१

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पष्ठ सर्ग बन्धन ? हाँ बन्धन-भजन का बल दे, ओ नवयुग वत्सर, हर ले यह कायरता, हर ले- यह आलस्य, मोह, मत्सर, आत्म-समर्पण की अनहद-ध्वनि, उठे विश्व के अम्बर मे, परम-मुक्ति की जगे लालसा, जग मे, सकल चराचर मे, हो जाने दे भस्म युगो के प्रात्म दीनता के बन्धन, कम्पित होन दे हृदयो मे मुक्ति - भावना - सुस्पन्दन १४० चिर जीवन की, रुचिर मुक्ति की, नव-आशा मन मे धारे, आए है हम सब जग जन-गण, हर्षित नव-युग द्वारे, गत सस्कार जनित आलस है, लक्ष्य दूर है झिलमिल - सा, मार्ग विकटतानो से पूरित, अति शूलित है, पकिल सा, पर, तव भृकुटि-विलास-प्रणोदन, आर्य, हमे देगा, इस पथ मे, हे देव, आपका, नाम हमे मगल देगा।"