पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६०५

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षष्ठ सर्ग १४७ क्या होगा उस समय यहाँ पर जब श्रीराम-गमन होगा ? सूनी - सूनी लका होगी, सूना दक्षिण वन होगा, किन्तु राम-लीला अविकल है, अविचल, नित्य अकम्पित है, जीवन सूत्र हमारे सबके, प्रभ इच्छा - अवलम्बित है, देव, पधारो, अवध-जनो के- हृदयो में आनन्द भरो, चौदह वर्षों का साघातिक यह वियोग का फन्द हरो ।" १४८ राम चरण वन्दन करके जब, बैठे श्री सुग्रीव कपीश, उठी सभा मे हर्ष - ध्वनि तब, जय-जय रामचन्द्र, जगदीश, हुई विसर्जित राजसभा वह, करती रघुपति का गुण-गान, राम-गमन की प्राशका से थे सबके मुखमण्डल म्लान, उधर दुर्ग में केतु - विमण्डित सज्जित पुष्पक वायु-विमान, सूचित करता था कि राम की यात्रा-घटिका पहुंची पान ।