पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६१४

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ऊम्मिला तीव्र जलन, जब निकला था घर से तब थी विप्रयोग की होता रहता था सस्मृति के सस्कारो से हृदय - दलन, घिर-घिर आती थी क्षण-क्षण मे मन-मन मे सौ-सौ स्मृतियाँ, याद बनी पा-या जाती थी क्रीडा - ब्रीडा की कृतियाँ, वह आतुरता मय हिय-कम्पन, भाभी, अब अब तो केवल शुद्ध प्रेम का- ध्यान-योग मय ज्ञान हुमा ।" प्रियमाण हुआ, "पर उस विगत-काल मे भी है, देवर, कितना आकर्षण ? उसकी स्मृति से हो उठता है अब भी मुझे रोम-हर्षण, घर से निकले थे यौवन के सुख-दुख को ले के सँग मे, अब फिर घर को चले रंगे से, प्रौढ -भावना रंग मे, वे पहाड सम चौदह वत्सर, वे भी लषित हुए, ललन, खूब नयन भर-भर कर देखा- काल - चक्र का चलन-कलन ।" ६००