पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६३१

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षष्ट सर्ग भाभी, तव नर-नारायण है, स्वय अर्द्धनारी - नटराज, और अर्द्ध-नर-नटीश्वरी हो, तुम-म्मिला जगत मे आज, देवि, नही देखा क्या तुमने अग्रज का वह नारी-रूप ? उन की इस विशाल छाती मे, है नारी का हृदय अनूप," "दे व र" यो कहते ही कहते, छलकी सीता की आँखें, और लखन वचन-भृग की भीज गई कोमल पाखें । २०० सखि, कल्पने, चला जाता है, मन्थर गति से पुष्पक-यान, उस पर से यह दीख पडे है धरती करती हुई पयान, वह देखो, अब दीख रहा है, कोसल जनपद का भू भाग, जिसे देख कर प्रार्य राम का, विचलित हुआ विदेह-विराग, अब कुछ क्षण म ही पहुंचेगा यान अयोध्या नगरी मे, और हर्ष - सागर उमडेगा कोसलपुर की डगरी मे ।