पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६५

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नन्हे-नन्हे कबूतरो की सुनना गुटुर-कहानी, प्यारी, अर्द्धस्फुटिता, तुतली उनकी बाते, रानी, कभी डालियो पर प्रमुदित हो उड कर बैठी रहना, कभी-कभी सखियो से तुम सब अपनी बाते कहना । जल्दी से वियोग की घड़ियाँ कट जाएँगी सारी, मै आ जाऊँगा जल्दी तब सुखद नीड मे, प्यारी, मेरी अनुपस्थिति मे तुम नित धीरज धारे रहना, रहो यही, मेरी कबूतरी, मानो मेरा कहना । १३७ यती कबूतर ने, कबूतरी को यो बाते कह कर-- हिय से लगा लिया उत्सुक हो स्नेह-धार मे बह कर, उडा कबूतर फिर, वह उसके अश्रु-सिक्त पत्रो से-- कानन में बरसी फुहियाँ, जल-सिञ्चित सुपतत्रो से । I 1 प्राह बिचारी वह कब्तरी बेठी-बैठी-बैठी- रोती रही, गोक-सागर मे पैठी-पैठी-पठी "अरी ऊम्मिले, तव कबूतरी ऐसी थी क्यो पगली ? अपने प्रिय कपोत के सँग वह क्यो न विपिन मे निकली? यदि कबूतरी मै होती तो कभी न रहती घर मे, साथ-साथ मै उडती फिरती वन मे और नगर मे, कभी न उसका सग छोडती चाहे जो हो जाता, चाहे वह कपोत कितने ही मेरे हा-हा खाता ।"