पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६७

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! १४५ 'अच्छा, अच्छा, चलो चले अब फूल तोडने को हम, मॉ की पूजा-सामग्री को चले जोडने को हम, देखो, कैसी खडी हुई है फूली सुघर चमेली, क्या सूरज ने आकर इससे अॉखमिचौनी खेली?" १४६ पाहा 1 उट कर चल दी दोनो ये बालिका सलौनी,- मानो वायु उडा लाई हो दो मालिका सलौनी, प्रति डाली से, प्रति पत्ती से, प्रति अधखिली कली से- "आओ, पात्रो का रव गूंजा प्रति मृदु कुज-गली से । १४७ "देखो जीजी, मैने कैसी अच्छी कलियाँ तोडी ।" "अरी ऊम्मिले, मैं ने तेरे लिए जुही है छोडी," "जीजी, देखो, यह गुलाब है कैसा अभिमानी-सा,- खडा-खडा दे रहा दान है यह तामस दानी-सा ।" १४८ "यह केतकी, म्मिले, है सब कसो की नानी । कॉटो से अपनी कलियो को है लॅक रही सयानी ।" "देखो जीजी, छिन्न मुकुल ये पडे क्यो यहाँ पथ मे ?" "इनको पौधो ने बिखराया है तेरे स्वागत मे ।" १४६ "जीजी, तुम्हे याद है फूलो की कुछ कथा-कहानी" "पूछो किसी कपोती से, हो कपोतियो की रानी ।" "क्या गान्धार देश की बाला तुम से कुछ न कहेगी?" "बक-बक करती जाएगी या तू अब मौन गहेगी ?"