पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६९

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क्या तुम करने लगी वहाँ पर, कहो, ऊम्मिले मेरी ? क्या नव तात चरण उपवन मे तुम्हे आ मिले थे, री?" "ना, मॉ, में सीता जीजी से कहने लगी कहानी, वही कहानी, मा, जिसमे थी कबूतरी बिलखानी ।' "और सुनाई थी मैने उसे पुण्य देश की गाथा,- जिममे बाला ने अनार्य का झुका दिया था माथा, मा, अम्मिला बडी रोनी-सी बात कह रही थी, री, और मुझे सँग लिए दु ख मे आप बह रही थी, री। १५७ ऐसी-ऐसी बातो को तुम क्यो कहती हो, री माँ, तुम क्या ऐसी बातो से भी सुख लहती हो, री, मॉ ?" "बेटी सीता, अच्छा होता है ये बाते सुनना, एकाधिक तारो से जीवन-पट पडता है बुनना । १५८ किन्तु कहानी सुन कर मन मे तुम दुख क्यो करती हो? बातो से प्रेरित होकर क्यो आहे तुम भरती हो ? आर्य बालिका है वह ही जो दुख के आ जाने पर- पर्वत तुल्य अचल रहती है, घोर घटा छाने पर ।" "मा, मैं कुछ पूछू ?" यो उत्सुक विमल ऊम्मिला बोली, "मना मत" यो कयन कर उठी उस की पृच्छा भोली, "तुम हँस दी थी उस दिन पूछी वे बाते जब मैने, भेद नही पाया है अब तक उन का माता, मैने ।"