पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/७०

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"री, नन्ही अम्मिले, जानती हूँ सब बाते तेरी, ऐसी पगली कहाँ मिलेगी जैसी त् है मेरी," "क्या है बात मुझे भी कह दो," सीता यो उट बोली, मूर्तिमती उत्सुकता ने ज्यो अपनी आँख खोली । ? !) "सीता जीजी, बडी भुलक्कड हो, तुम भूल गई क्या उपवन की वे बाते विस्मृति-सरिता-कूल गई क्या "क्या कपोत वाली बाते ? हूँ ! कहाँ उन्हे मैं भूली , "जीजी, कपोतियो के पीछे डोल रही हो फूली ।' १६२ "देखो, माँ इसकी बाते, तुम निज बेटी को देखो,- अपनी नन्ही सरल अम्मिला के रंग-ढंग तो पेखो ? स्पष्ट रूप से कहने मे तुम यो सकुचाती क्यो हो यदि मै भूल गई हूं तो फिर मुझे खिझाती क्यो हो ।” ? "जीजी री, बिगडो मत, माला वाली बात वही है, जो मैने उपवन मे तुम से पूछी, और नहीं है । तात चरण की ग्रीवा मे, मॉ क्यो पहनाती माला क्यो उनकी ऑखो मे उस क्षण आता नव उजियाला?" ? ? "हाँ, हाँ, मॉ, बतलायो, री, तुम ऐसा क्यो करती हो कभी मूद कर अॉखे किस का विमल ध्यान धरती हो? तात चरण जब आते है तब तुम क्यो हँस देती हो अपनी माला उनको देकर फिर क्यो ले लेती हो ?" ?