पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/७२

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१७० जनक-प्रिया ने ये बाते सुन कर अपने हाथो से, छोटी बेटी को थामा, बह चला नेह गातो से, आँखो म उस मुग्ध भाव की छटा अनोखी छाई , हृदय उल्लसित हुआ, कपोलो पर कुछ लाली आई। १७१ बड़े प्यार से गोरे गालो को रानी ने चूमा,- ज्यो वात्सल्य-भाव षट्पद बन नव गुलाब पर झूमा, सीता बजा उठी निज दोनो गौर करो से ताली, मानो, नाच उठे नंद-गृह मे द्वापर के वनमाली । १७२ "अच्छा बैठो मेरी नन्ही दोनो तुम गुर्वाणी, आज सुनाऊँगी मै तुम को अच्छी एक कहानी।' "कथा कहानी कौन सुनेगा ? हम तो नहीं सुनेगी, हम क्या करे कहानी सुनकर, हम तो वही सुनेगी।" १७३ "देखो, सीता, तुम तो फूले-से प्रसून लाई हो, और ऊम्मिले, तुम अच्छी-सी कलियाँ ले आई हो कैसी माला गॅy? बोलो चपल ऊम्मिला रानी, सेत मेत मे बन जानोगी क्या मेरी गुर्वाणी ? १७४ तुम न बताोगी यदि मुझ को इस माला का गुम्फन,- तो तुम को देने होगे दस-बारह मुझ को चुम्बन, और सुनो, शिक्षिके, तुम्हारे कानो को खीचूंगी, सुघर तुम्हारी आँखो को मे अञ्चल से मीनूंगी ।