पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/७३

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हाँ। फिर अधी-सी हो करके खडी खडी तुम गाना, और ऊम्मिले, हम देखेंगी वह तव मृदु मुसकाना, यदि तुम चाहो जल्दी से इस कठिन दड से बचना, तो रानी, मुझको बतलाओ इस माला की रचना ।" "यो माँ, देखो, मैं तुमको अव सब कुछ बतलाती हूँ,- अपनी माला-गुम्फन-विधि मै तुम को समझाती हूँ, पहले एक गुलाब-कली इस धागे मे पहिनाओ, फिर इस गीतभीरु को उसके तुम समीप ले जायो । १७७ इस प्रकार तुम पूरी माला गूंथो औ' मुसकाओ और साथ ही मेरे मन की बात सुनाती जाओ।" "मों, उम्मिला, ठीक से माला-रचना नहीं बताती, यो ही अपनी मनमानी कुछ की कुछ बकती जाती।" १७८ "मेरी बडकी मुन्नी, देवू तुम अब क्या कहती हो, देखू ललित-कला-धारा मे तुम कैसे बहती हो तुम भी मुझे बता दो अपनी हिय की सारी विधियाँ, निज सुबुद्धि-मञ्जूषा की तुम प्रकट करो सब निधियों।" १७६ "देखो माँ," यो कह उठ बोली नवल उल्लसित सीता, मानो स्वर-भाजन को कर्णो मे करती हो रीता, "कोमल पारिजात कलियाँ तुम प्रथम सूत्र मे डालो, फिर मौलश्री के फूलो से अपनी माल संभालो !" ?