पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/७८

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7 - २०० जब तुम बडी लली हो जाओ तब तुम भी यह करना, अपने पति के वक्ष स्थल में प्रेम-पाश यो धरना देखो, री मिले, तुम्हारी सीता जीजी बैठी,- चुपके चुपके सुनती जाती है यह मेरी बेटी ।" २०१ सीता बोली-"पति,यह क्या है? यह तो तुम बतलाओ? क्यो विवाह करते हैं ? यह सब तुम मुझको जतलाओ, इतने ही मे सन्निधान मे दासी आ राज्ञी के बोली "श्रीराजाधिराज गृह आये सम्राज्ञी के ।" २०२ सीता और अम्मिला यह सुन नाच उठी प्रमुदित हो- जैसे नभ में मिथुन राशि है करती नृत्य उदित हो, सीता फिर बैठी माता की वत्सल गोदी पा कर, और ऊम्मिला माँ के कन्वे लिपट गई हरषा कर । २०३ "सती, मन्त्रणागार बना है क्या यह भवन तुम्हारा ये दोनो क्या आज कर रही है शुभ स्तवन तुम्हारा किसी सुगूढ विषय की बाते आज हो रही है क्या ? कोई प्रश्न छिड गया है यह आज भोर ही से क्या २०४ प्राणनाथ के इन वचनो को सुनकर जनक प्रिया ने-- सीता को अवलोका, पुलकित होकर सुता सिया ने- कहा--"तात, ऊम्मिला आज कुछ माँ से पूछ रही है, माता ने भी हम से सुन्दर सुन्दर बात कही है ।" ?