पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/८५

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२३५ पूज्या श्वश्रू को सिखवन की मीठी-मीठी बाते- जब-तब श्री मम्मला सुनेगी, गृह में आते-जाते, जब शत्रुघ्न कहेगे "भाभी ।" तब वह पुलक उठेगी, सखियो के सुगूढ वचनो को सुन वह किलक उठेगी। 7 अपने बाके प्रिय की प्यारी उस बाकी-सी छवि पर,- दिन मे सौ-सौ बार करेगी अपने को न्यौछावर , ननदी के तीखे कटाक्ष को सुन वह खीझ उठेगी लक्ष्मण की वीरता-कहानी सुन-सुन रीझ उटेगी। २३७ अरी कल्पने, कुछ वर्षों में यह सब हो जाएगा, यदि तेरा सुदूर दर्शन कुछ-कुछ नव बल पाएगा,- तो तू करना इन सब बातो का वर्णन, हे बौरी, तब स्वामिनी तुझे न रखेगी निज करुणा से कोरी । २३८ अब तू चल साकेत नगर को इस पुनीत नगरी से, वहाँ उदधि को तू उलीचना छोटी-सी गगरी से, जब तक हे शिथिले, पहुँचेगी तू कोशलपुर वर मे, श्री ऊम्मिला पहुँच जायेगी तब तक पति के घर मे । २३६ किन्तु, ठहर तो तनिक उधर को तू चल धीरे-धीरे,- जिधर ऊम्मिला, माता के सँग, कमल-सरोवर-तीरे,- आकस्मिक तैयारी की हलचल से आकर्षित हो- फुल्ल कमल को लजा रही है आँखो से, विस्मित हो ।