पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/९०

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ऊम्मिला ? > शहनाई बज रही, नगाडो का रव गूजरहा सब ओर, मानो मूत्तिमान हर्ष-ध्वनि गगन भेदने चली अथोर । लक्ष-लक्ष पुरजन प्राए है, दशरथ नृप के गृह छाए है, अपना भक्ति-भाव लाए है, प्रेम-मुदित है, हरषाए इन्हे कौन-सा कोय मिला है ? क्यो य हर्षोन्मत्त हुए वृद्ध अवध-पति के लोचन क्यो आज नेह से सिक्त हुए ? (४) सुनो राजगृह मे गाती है गणिका मधुर-मधुर कडिया, प्रीति-काव्य की गूथ रही है चतुरा सुखद स्निग्ध लड़ियाँ सुनो उठ रही वह स्वर-लहरी- स्वागत गीतो की रह-रह, री, और हम जाने, क्यो उमडी हर्ष-ध्वनि गहरी । त्रेता के कोशलपुर वासी क्यो यह हर्ष मनाते है ? तब हम जानेगे किस कारण ये इतने इठलाते है ? (५) कौशलेन्द्र दशरथ बैठे है राजसभा म मस्त हुए । मनवाछित फल पाकर उनके पूरित है श्री हस्त हुए । इधर राम-लक्ष्मण के वृद्ध पिता का हरत है दुख , भरत-शत्रघ्न विराजे सरसा तात-हिए मे नव सुख , नरपति के दाएं-बाएँ में खिले पुरातन उपवन फूल, हुए अकुरित वृद्ध विटप में अथवा नव पल्लव सुख मल । उसको सुने श्री मुख- उधर >