पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

द्वितीय सर्ग 7 ? "राजन, अहोभाग्य है हम सब के, कि आप सरताज हुए, हम है धन्य, अवध धन्या, चर अचर धन्य तव राज हुए काम-मोक्ष की, धर्म-अर्थ की, अथवा नरपति से अनर्थ की, तव शासन मे, हे शासक वर, हमे न चिन्ता हुई व्यर्थ की, अब तो चतुष्फलो की चिन्ता हुई और भी -दूर धनी, क्योकि मदेह आज प्रकटे है, चारो फल, हे अवध धनी । (१७) कौशलेश क पुण्यराज्य म ऋद्धि-सिद्धि की कब थी चाह फिर भी आप प्रजा वत्सल है, उन्हे घेर लाए, नरनाह सीता और अम्मिला पाई, राम-लखन पर बलि-बलि जाही, श्रुति कीरति माण्डवी सलोनी- बनी अन्य दो की परछाही अब तो है सिद्धियाँ अनुचरा अवध कुमारो की सारी, आप धन्य है, हमे दिखाया यह सुख मुद मगलकारी । (१८) आज हमारे घर आई है ऋद्धि-सिद्धि देवियाँ सभी, मृदुता, कला, सौख्य, सुषमा जो थी विदेह गृह अभी-अभी, वे मिथिला वासी क्या जाने ? सुषमा को वे क्या पहचाने ? ऐसी इन ललिताओ मे ये- अवधकुमार जाय अरुझाने अब हम चारो युगल जोडियाँ पूजागृह में रखेंगे, नृपति, आपकी कृपा कि हम सब वत्सलता-रस चक्खेगे।" 1 ! •८१