पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/९६

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अम्मिला उत्ताल देखे हम तुम 1 (१६) राजसभा की लीला कब तकतू देखेगी, अरी सखी, चल अलबेली, सरयू तट से छोडे हम निज तरी, सखी । एक-एक लहर भंवरो के गंभीर गह्वर मे- नवोल्लास यह जो छाया है प्रकृति अचर मे । इधर उधर नैया डुलने दे डॉड हाथ से छोड , सखी, उसे आज सरयू-प्रवाह से बद लेने दे होड, सखी । (२०) इठलाती है सरयू, लहरे उसकी ये बल खाती है एक-एक में गुथी नेह का फेना ये छलकाती है तटवर्ती वक्षो की डाली- चूम रही है ये मतवाली अवधि-हीन आनन्द समाया, कैपी पल्लवो की हरियाली बॉके लक्ष्मण, सुघड उम्मिला की गाथाएँ गाती है, नव-विवाह उत्सव के कारण लहरे हर्ष मनाती है । (२१) दिनमणि ने नभ मे निज कर से छिटकाया आलोक नया, फैला सौरभ, भूतल रीझा, प्रकृति हँसी, तम-शोक गया , उडे विहंगम छोड नीड ये, हुए आज है विगत-पीड ये, खुला राग कनक-करण्डक, मुखरित हुई विभास-मीड ये । कण्ठ नहीं, अणु-अणु गाता है, दिग्-दिगन्त है कम्पित आज, विश्व गा रहा-अहा रही है लखन हिये ऊम्मिला विराज । 1 का