पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/११५

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अनि॰-अगर तू वैष्णव सम्प्रदाय का वैरी है तब तो मुझे प्रसन्नता है कि मैं उसका मुक्काबला कर रहा हूँ जो मेरे कर्स का विरोधी है:-

अवतलक समझा था रिश्ता मैं श्वसुर दामाद का।
पर समझ में आगया सब जाल अब सैयाद का॥
याद रख जालिम न अब बचा है तेरे सामने।
वैष्णवों के धर्म का लोहा है तेरे सामने॥

वाणा॰-छोकरे, सॉप की बॉबी में हाथ न डाल !

अनि॰-डालूंगा, मगर साँप को पकड़नेवाले बैगी की तरह ।

वाणा॰-अच्छा तो ले ! ( तलवार निकालकर ) तूने मेरी यह चमकती हुई तलवार नहीं देखी है ?

अनि॰-देखी है, माता की गोद में से निकलने के बाद ऐसी कितनी ही तलवारों से मैं खेला हूँ।

वाणा॰-नादान, मेरे गुस्से की आग को क्यो भड़का रहा है?

अनि॰-ताकि वह तेरे पापो को भस्म करके तुझे शुद्ध बैष्णव बनादे।

वाणा॰-अच्छा तो खबरदार!

अनि॰-धिक्कार, निहत्थे बालक पर वार करते लज्जा नहीं आती?वीर है तो खम ठोक कर मैदान में आ। मुझसे कुश्ती लड़के फतेह पा।

वाणा॰-अच्छा तो आजा।

(तलवार फेंककर कुश्ती लड़ता है
अनिरुद्ध उसकी छाती पर चढ़ बैठता है)