पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१२५

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गङ्गा०--थी कहाँ, विधवा होने के लिए अखंड तपस्या कर रही होगी।

माधवी--पमा बताऊँ गुरकी महाराज, मेग तो ऐसे पति से पाला पड़ा है कि मैं कुछ कह ही नहीं सकती। जभी अपने मुंह से से गुरू मन्दिर का नाम निकालती हूं कि उनकी त्योरी चढ़ जाता है । मैने जैसे ही कहा कि गुरुजी के दर्शन कर भाऊ , सा तत्काल व गुरु-प्रथा की निन्दा करने लग गये !

गङ्गा०--तो उन्हे मोक्ष प्राप्त नहीं होगी !

माधवी--परन्तु मैंने उनकी एक न मानी और लड़ झगड कर सीधे यहाँ आने की ठानी। अब अगर वे नाराज होजायंगे तो मेरा क्या बिगाड लेगे ? दो चार दिन हाथ से ही थोप कर खालेगे।

महंत--बहुत अच्छा किया,तुम्हें ऐसा ही करना चाहिए था। भगवान् श्रीकृष्णजी की भक्ती में "ब्रज वनितन पात त्यागे भइ जग मंगल कारी” अर्थात् जब ब्रज की स्त्रियों ने अपने पति को त्यागा, तभी वे मंगल कारी हुई । इस वास्ते जो मूर्ख नास्तिक पति या पुत्र गुरुचरणों की सेवा छुड़वाता है वह घोर नरक में जाता है। अच्छा श्रा, सावधान होकर सत्संग सुन । विष्णु पुराण में भगवान का ध्यान श्वेतवर्ण का लिखा हुभा है, और सब पुराणो मे श्यामरङ्ग को माना है । जैसा कि-

शुक्लाम्बर धरं विष्णु, शशिवर्ण चतुर्भुजं ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशीतये ।।

इसका अर्थ हमारे आचारीजी ने इस प्रकार किया है कि यथार्थ में यह दही भड़े का वर्णन है। क्योंकि शुक्लॉवर का