पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१२६

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अर्थ सफेद दही लगा हुभा और विष्णु का अर्थ विशेष रूप में बना हुआ है, शशिवर्ण का अर्थ चन्द्रमा की तरह गोलगोल और चतुर्भुज का अर्थ आहेसो चतुर लोगो का भोजन है । इस प्रकार जामो प्रसन्नवदन अर्थात जिसक ध्यान से मुख प्रसन्न होजाता है, अर्थात् मुस्खमे पानी भर भाता है उस दही बड़े को नमस्कार है।

स०--वाह, बाह, धन्य है, धन्य है, गुरुजी महाराज

महंत--परन्तु इस श्लोक का हमारे दादा गुरुने अर्थ यही किया है कि शुक्लॉबरधरं आत् सफेद र गबाला रुपया विशनू जी की तरह स्वच्छ और शशिवर्ण चन्द्रमा की तरह गोल एवं चतुर्भुजं कहिए चार मुजा बाला छार्थात एक रुपये की चार चौमनो होती हैं। सो ऐसे जिस रुपये के ध्यान ले मन प्रसन्न होता और विघ्न शांत होजाते हैं, उस रूपये का ध्यान करो। क्योकि यह रुपया मरने पर साथ नहीं जाता, यह बड़े शोक की बाल है। (गद्गद होकर) हमारे गुरुजी भी सब रुपया यहीं छोड़ कर चलेगये, जोहेसो इस रूपये की महिमा कहाँतक कही जाय । आंखो में आसू आजाते है और गला भर जाता है]

गङ्गा-परन्तु गुरुजी, आपकी यह बातें मेरी तो समझ मे बिल्कुल नहीं पाई!

महंत-चुपरह मूर्ख, सत्संग में विघ्न डालता है ?

एकदा नार दो योगी, परानुग्रह कान्छिया।
पर्यटनविदुधार लोटान ,विष्णु लोटे गवायनम् ।।

एक समय दूसनों की भलाई के समय जिन्होंने कान छिया है ऐसे दो योगियों ने ब्रह्माजी को एक बार लाके दी। तब ब्रह्मा