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डर वाण का नहीं है, जब ध्यान में ऊषा है ।

ऊषा:--(गुप्त वेश मे चित्रेरखा के साथ आकर)

जब ध्यानमें ऊषा है, तो नागपाश क्या है ?

भनि:--कौन ? नागपाश का नाम लेनेवाली तुम कौन हो ? इस समय कारागार में आने वाली तुम कौन हो ? देवी हो या दानवी ! किन्नरी हो या मानवी ! कल्याणी हो या भैरवी ! छाया हो या माया ! पतामो तुम कौन हो ?

चित्र:--(आगे बढ़कर)

न छाया हैं न माया है न देवी दानवी हम हैं ।
जो दम भरता है दमदम पर उसी हमदमकी हमदम हैं ।।

भनि०:--मैं नहीं समझा, स्पष्ट कहो तुम कौन हो!

चित्र:--हम वो हैं जो आप जैसे निरपराधी को कारागार में नहीं देख सकती हैं, और आप के हृदय में जिसका प्यार है उससे भी बढ़कर रूपवती, गुणवती नारी से आपका विवाह करा सकती हैं !

अनि०:--चन्द कीजिए,बन्द कीजिए, ये वाक्य रूपी प्रहार बंद कीजिये । ये शब्द वाण मुझे तीक्ष्ण वन की तरह सतावे हैं। तक्षक पाश से भी अधिक कष्ट पहुंचाते हैं।

चित्र:--इसीलिए तो हम तुम्हें छुड़ाना चाहती हैं। हमारी बात पर ध्यान दीजिए और ऊषा का विचार छोड़कर हमारे साथ चलने की तैयारी कीजिए।