पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१४२

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श्रवणकुमार

(ले०-५० राधेश्याम कथावाचक )

(यह नाटक संयुक्त-प्रान्त के शिक्षा विभाग द्वारा 'ऐगलोवर्नाक्यूलर तथा वर्भाक्यूलर स्कूलों की लाइब्रेरियों मे रक्खे जाने एवम् पारितोषिक दिये जाने के लिये स्वीकृत हुआ है)

"श्रीसूरविजय नाटक" समाज के स्टेज पर खेला जाने वाला यह वह नाटक है जिसकी तारीफ़ लिखकर नहीं हो सकती। जिन्हाने उक्त नाटक समाजमें जाकर इसका खेल देखा है वे ही जानते हैं कि यह नाटक क्या चीज़ है।

दिल्ली के दैनिक "विजय" ने इसपर यह राय दी हैः- 'नाटक मनोरम्जक और शिक्षादायक है।'

मथुरा के मासिक पत्र "गौड़हितकारी” की राय है:- 'इस पुस्तक के पढने पर श्रवण वालक के विचारों का' उसकी मातृ-पितृ भक्ति का वह चित्र हृदय पर खिचता है कि जिससे चित्त गद्गद् हो जाता है।

काशो के दैनिक पत्र "आज" ने राय दो है कि--

'इस नाटक के नायक रामायण वर्णित प्रसिद्ध मातृ-पितृ-भक्त श्रवणकुमार है, और उनकी आदर्श मातृ-पितृ-भक्ति तथा उसके परिणाम हा इसमे देिखाये गये हैं। कांवरत्नजी को नाटक के रोचक और परिणामकारा बनाने मे अच्छी सफलता हुई है। अपनी ओर से उन्होंन जिन पात्रो की कल्पना की है उनके चरित्र नाटक की उद्देश्य-सिद्धि में पूर्णरूप से सहायक है। अर्थात् उनके द्वारा माता पिता का सेवादि स सन्तुष्ट रखने और इसके विपरीत श्राचरण की भलाई और बुराई का चित्र दर्शकों के मन पर अधिक स्पष्ट रूप में अकित होजाता है।

श्रीसूरविजय नाटक समाज बरसों से इस नाटक को बड़ी सफलता के साथ खलरहा है। इस नाटक की भाषा साधु और ओजस्वी है, पद्य भाग भी अच्छा है। यह नाटक चौथीबार छपकर तैयार हुआ है । दाम ।।।।)


पता-श्रीरधेश्याम पुस्तकालय, बरेली।