पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/४७

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मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरे राज्य में वैष्णवों का इतना जोर बढ़ गया । उसी दिन मैंने मन ही मन प्रतिज्ञा की कि पहले तो राजी से वैष्णवों को समझाऊंगा, शैवधर्म में उन्हें लाने का उपाय रचाऊंगा, और अन्त में यदि वे नहीं मानेंगे तो विष्णुदास की तरह उन्हें भी ठिकाने लगाऊंगा।:-

बहादुर को कहीं किञ्चित् भी भयखाना न आता है।
मैं राजा हू', प्रजा से मुझको उरजाना न आता है ।।

नारद--परन्तु राजन् , इन ग्रहों से आप किस प्रकार बचाउ करेंगे?

बाणासुर--उपाय करेगे। सुनो, आज सबके सामने यह बात खोलकर कहे देता हूं कि विवाह के योग्य जब राजकुमारी होजायगी तो उसके कुछ दिन पहले ही जल के भीतर एक खम्भे पर महल बनाकर उसमें कैद करदी जायगी। वैष्णव तो क्या किसी भी जीव के पास तक उसकी हवा न पहुंचाई जायगी।:-

देखना है किसतरह वैष्णव विवाह रचायेंगे।
किसतरह ग्रह अपना फल संसार में दिखलायेंगे।
मेरा गृह जायेगा तो ग्रह भी न रहने पायेगा।
मेरी एक हुंकार से जग में प्रलय होजायेगा।

विष्णुदास की आत्मा-

उदय हुआ है दुष्ट अब, तेरा पिछला पाप । मिथ्या होसकता नहीं, ब्रह्मवंश का शाप ॥

(सब आश्चर्य में भाजाते हैं)