पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/५४

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माधो०--यह बड़ी साधारण बात है । क्योंकि रामायणजी में लिखा है कि-

रामो दाशरथिः साक्षाद्भगवान्विश्ववाहकः ।
आत्मावै सर्वभूतानां प्राणाः वैसर्वप्राणिनाम्॥

इस प्रमाण से रावण भी राक्षस था और राम भी ........

कृष्ण०--(रोककर) ठहरिए महाराज, यह आप कैसा अर्थ कररहे हैं !

माधो०--अरे बाबा! अर्थ करते २ तो खोपड़ी थकगयी। अच्छा आज यहीं सत्संगजी की समाप्ति होती है । बोलो रामलला की--

सब--जय।

माधो०--भेखजी की--

सब--जय।

माधो०--सब संतन की-

सब--जय।

माधो०--अखाड़े की-

सब०.--जय।

कृष्ण--(स्वगत) निश्चित होगया। वैष्णवो, तुम्हारे पतन का कारण आज निश्चित होगया । जिस रामायण को विद्वान् लोग आदर से सिर झुकाते हैं उसी गमायण के नाम पर अण्ट- सण्ट श्लोक बोलकर उनके अर्थों का अनर्थ किया जाता है ! हा, ऐसे ही ऐसे मूखों ने शास्त्रों को बिगाड़ा है। बस, सब से पहले हमें इन्हीं लोगो को सुधारने की आवश्यकता है । क्योकि शत्रु