पृष्ठ:एक घूँट.djvu/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
एक घूँट


सरलता और सौन्दर्य दोनों का ज्ञान नहीं। फिर आनन्द के नाम पर वे दुख का नाम क्यों लें?

प्रेमलता––(उदास होकर) यदि हम लोगों की दृष्टि में उनके वहाँ सौन्दर्य्य का अभाव हो, तो भी उनके पास सरलता नहीं है, मैं ऐसा नहीं मान सकती।

आनन्द––तुम्हारा न मानने का अधिकार मैं मानता हूँ; किंतु वे अपने भीतर ज्ञाता बनने का निश्चय करके, अपने स्वार्थों के लिये दृढ़ अधिकार प्रकट करते हुए, अपनी सरलता की हत्या कर रहे थे और सौन्दर्य्य को मलिन बना रहे थे। काल्पनिक दुःखों को ठोस मानकर......

मुकुल––(बात काटते हुए) ठहरिये तो, क्या फिर 'दुःख' नाम की कोई वस्तु हुई नहीं?

आनन्द––होगी कहीं! हम लोग उसे खोज निकालने का प्रयत्न क्यों करें? अपने काल्पनिक अभाव, शोक, ग्लानि और दुःख के काजल-आँखों के आँसू में घोलकर सृष्टि के सुन्दर कपोलों को क्यों कलुषित करें? मैं उन दार्शनिकों से मतभेद रखता हूँ जो यह कहते आये हैं कि संसार दुःखमय और दुःख के नाश का उपाय सोचना ही पुरषार्थ है।

(वनलता चुपचाप तीव्र दृष्टि में दोनों को देखती हुई अपने बाल सँवारने लगती है और प्रेमलता आनन्द को देखती हुई अपने-आप सोचने लगती है।)

१६