पृष्ठ:एक घूँट.djvu/१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
एक घूँट


है न! तब भी हृदय भूखा और प्यासा! इसी से मैं स्वच्छन्द प्रेम का पक्षपाती हूँ।

वनलता––वही तो मैं समझ नहीं पाती, प्रतिकूलताएँ...


(कहते-कहते रसाल को देखकर रुक जाती है, फिर प्रेमलता को देखकर) प्रेमलता! तुमने आज प्रश्न करके हम लोगों के अतिथि श्रीआनन्दजी को अधिक समय तक थका दिया है। अच्छा होता कि कोई गान सुनाकर इन शुष्क तर्कों से उत्पन्न हुई हम लोगों की ग्लानि को दूर करतीं।

प्रेमलता––(सिर झुकाकर प्रसन्न होती हुई) अच्छा, सुनिये। (सब प्रसन्नता प्रकट करते हुए एक दूसरे को देखते हैं)

प्रेमलता––(गाती है)

जीवन-वन में उजियाली है।
यह किरनों की कोमल धारा––
बहती ले अनुराग तुम्हारा––
फिर भी प्यासा हृदय हमारा––

व्यथा घूमती मतवाली है।

हरित दलों के अन्तराल से––
बचता-सा इस सघन जाल से।
यह समीर किस कुसुम-बाल से––

माँग रहा मधु की प्याली है।

२०