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एक घूँट

अन्धकार गिरि-शिखर चूमती––
असफलता की लहर घूमती
क्षणिकसुखों पर सतत झूमती––शोकमयी ज्वाला।

(संगीत समाप्त होने पर एक दूसरे का मुँह बड़ी गंभीरता की मुद्रा से देखने लगाते हैं)

आनन्द––यह स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त हानिकारक है। ऐसी भावनाएँ हृदय को कायर बनाती हैं। रसालजी, यह आपकी ही कविता है! मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि.........

रसाल––मैं स्वीकार करता हूँ कि यह मेरी कल्पना की दुर्बलता है! मैं इससे बचने का प्रयत्न करूँगा। (सब लोगों की ओर देखकर) और आप लोग भी अनिश्चित जीवन की निराशा के गान भूल जाइये। प्रेम का प्रचार करके, परस्पर प्यार करके, दुःखमय विचारों को दूर भगाइये।

मुकुल––किन्तु प्रेम में क्या दुःख नहीं है?

रसाल––होता है, किन्तु वह दुःख मोह का है, जिसे प्रायः लोग प्रेम के सिर मढ़ देते हैं। आपका प्रेम, आनन्दजी के सिद्धान्त पर, सबसे सम-भाव का होना चाहिये। भाई, पिता, माता और स्त्री को भी इन विशेष उपाधियों से मुक्त होकर प्यार करना सीखिये। सीखिये कि हम मानवता के नाते स्त्री को प्यार करते हैं। मानवता के नाम.........(सब लोग वनलता की ओर देख-

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