पृष्ठ:एक घूँट.djvu/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
एक घूँट


के तट, पहाड़ों के नीचे या मैदानों में निकल जाइये। किन्तु––नहीं-नहीं, मैं सदा भूल करता आया हूँ। मुझे तो ऐसी जगहों में रोगी ही मिले हैं जिन्हें वैद्य ने बता दिया हो––मकरध्वज के साथ एक घण्टा वायुसेवन। अच्छा, आप लोग व्याख्यान दीजिये। मैं चलता हूँ; चलिये श्रीमतीजी। उँहूँ आप तो सुनेंगी न! आप ठहरिये। (झाड़ू देना बन्द कर देता है)

आनन्द––मुझे भी आज आश्रम से विदा होना है। आप लोग आज्ञा दीजिये। किन्तु...........नहीं, अब मैं उस विषय पर अधिक कुछ न कहकर केवल इतना ही कह देना चाहता हूँ कि इस परिणाम से––इस स्वच्छन्द प्रेम को बन्धन में डालने के कुफल––से आप लोग परिचित तो हैं; पर उसे टालते रहने का अब समय नहीं है। (वनलता, झाड़ूवाला और उसकी स्त्री को छोड़कर सबका प्रस्थान)

वनलता––(झाड़ूवाले से) क्यों जी, तुम तो पढ़े-लिखे मनुष्य हो, समझदार हो?

झाड़ूवाला––हाँ देवि! किन्तु समझदारी में एक दुर्गुण है। उसपर चाहे अन्य लोग कितने ही अत्याचार कर लें; परन्तु वह नहीं कर सकता––ठीक-ठीक उत्तर भी नहीं देने पाता! (झाड़ू फटकारकर एक वृक्ष से टिका देता है।)

वनलता––प्लेटो-अफलातून ने कहा है कि मनुष्य-जीवन के लिये संगीत और व्यायाम दोनों ही आवश्यक हैं। हृदय में संगीत

३५