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एक घूँट


और शरीर में व्यायाम नवजीवन की धारा बहाता रहता है। मनुष्य...

झाड़ूवाला––और पतंजलि ने कहा है कि जो मनुष्य क्लेश, कर्म और विपाक इत्यादि से अर्थात् रहित-तात्पर्य्य वही-वही कुछ-कुछ सूना-सूना––जो पुरुष मनुष्य हो वही ईश्वर है।

वनलता––इससे क्या?

झाड़ूवाला––आपने प्लेटो को पुकारा, मैंने पतञ्जलि को बुलाया। आपने एक प्रमाण कहकर अपनी बातों का समर्थन किया, और मैंने भी एक बड़े आदमी का नाम ले लिया। उन्होंने इन बातों को जिस रूप में समझा था वैसी मेरी और आपकी परिस्थिति नहीं––समय नहीं, हृदय नहीं। फिर मुझे तो अपनी स्त्री को समझाना है, और आपको अपने पति का हृदय समझना है।

वनलता––(चौंक कर) मुझे समझना है और तुमको समझाना है! कहते क्या हो?

झाडूवाला––जी––(अपनी स्त्री से) कहो, अब भी तुम समझ सकी हो या नहीं!

झा॰ की स्त्री––मैंने समझ लिया है कि मुझे सितार की आवश्यकता नहीं, क्योंकि––

झाड़ूवाला––क्योंकि हमलोग दीवार से घिरे हुए एक बड़े भारी कुंजवन में सुखी और सन्तुष्ट रहना सीखने के लिये बन्दी बने हैं। जब जगत से, आकांक्षा और अभाव के संसार से,

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