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एक घूँट

इस अनन्त स्वर से मिल जा तू वाणी में मधु घोल।
जिससे जाना जाता सब यह, उसे जानने का प्रयत्न! अह!
भूल अरे अपने को मत रह जकड़ा, बन्धन खोल।

खोल तू अब भी आँखें खोल।

(संगीत बंद होने पर कोकिल बोलने लगती है। वनलता अञ्चल छोड़कर खड़ी हो जाती है। उसकी तीखी आँखें जैसे कोकिल को खोजने लगती हैं। उसे न देखकर हताश-सी वनलता अपने-ही-आप कहने लगती है––)

कितनी टीस है, कितनी कसक है, कितनी प्यास है; निरन्तर पञ्चम की पुकार! कोकिल! तेरा गला जल उठता होगा। विश्व-भर से निचोड़कर यदि डाल सकती तेरे सूखे गले में एक घूँट। (कुछ सोचती है) किन्तु इस संगीत का.....क्या अर्थ है......बन्धनों को खोल देना, एक विशृङ्खलता फैलाना परन्तु मेरे हृदय की पुकार क्या कर रही है। आकर्षण किसी को बाहुपाश में जकड़ने के लिये प्रेरित कर रहा है। इस संचित स्नेह से यदि किसी रूखे मन को चिकना कर सकती? (रसाल को आते हुए न देखकर) मेरी विश्व-यात्रा के संगी, मेरे स्वामी! तुम काल्पनिक विचारों के आनन्द में अपनी सच्ची संगिनी को भूल...

(रसाल चुपचाप वनलता की आँखें बन्द कर लेता है, वह फिर कहने लगती है) कौन है? नीला, शीला, प्रेमलता! बोलती भी