पृष्ठ:कंकाल.pdf/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

| परिका और सरला, विषय और घण्टी की रौवा में लगी । सरना ने कहा—चार्य ते आऊ, उसे पोने से स्फूति आ जामगी 1 विजय ने कहा- नहीं । धन्यवाद । अब हम लोग चले जा सफते है । | मेरी सम्मति है कि आज की रात आप लोग इसी बैंगले पर विसावे, संभव हैं कि वे दुष्ट फिर वही घात में लगे हों ।—ततिका ने कहा ।। सला, लतिका के इस प्रस्ताव से प्रसन्न होकर घण्टी से बोली–बयो बेटी! तुम्हारी का सम्मति है! मुण भौगों का घर यहीं से कितनी दूर है ! कहकर रामदास यो कुछ कैत किया । विनय ने कहा- हम लोग परदेशी हैं, यहीं पर नही। अभी मही भाये एक सप्ताह से अधिक नहीं हुआ। आज मैं इनके साथ एप तग पर घूमने निकला। दो-तीन दिन से दो-एषा मुसलमान गुण्ड़े हुम लोगों ने प्रायः घूम-फिरकर देखते ये। मैंने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया था। आज एक ताँगेबाला मेरे कमरे के पास होगा रोककर भही देर तयः किं से वार्ते गरता रहा । मैंने देखा होगा अच्छा है । पुष्टी-लिराये पर चलोथे ! उनै भन्नता है स्वीकार कर लिया है संध्या हो चली थीं । हम लोगों ने घूमने वैः विचार से चलना निश्चित किया और उस पर जा बैठे। इतने में रामदास गाय का सामान लेकर अयि । विवर्य में पीकर तज्ञता प्रकट करते हुए फिर कहना भारम्भ किया--हम लोग बहुत दूर-दूर घूमकर इस चर्च के पास पहुँचे । इच्छा छुई कि घर लौट जाते; पर उस साँगेयाता ने कहा—बालू साहिब, यह पर्च अपने ढंग का एक ही है, इसे दे तो लीजिए। हम तोग कुतूहल से प्रेरित होकर इसे देखने के लिए भने । सहसा अंधेरी झाड़ी में से थे ही दोनो गुण्डे निकल जाने और एक ने पीछे से मेरे सिर पर डण्डा मारा । मैं आकस्मिक चोट से गिर पड़ा। इसके बाष मैं नहीं जानता कि क्या हुआ। फिर, जैसा यहाँ पचा, वह संभं तो आप लोग थानती हैं। घण्टी ने कहा--में पह देखते ही भागौ । मुझसे जैसे किसी ने कहा कि, ये राय मुझे तांगे पर बिठाकर ले भागेगे । आप लोगों को पूपा से इम लोगों की रक्षा हो गई। गरजा, पिण्टी को हाय गरुड़कर भीतर ले गई। उसे कपड़ा बदलने को दिया । दूसरी धोती पहनकर गर्व है यार भाई, तब सरला ने पूछा-भण्टी ! थे तुम्हारे पति हैं ? कितने दिन बीते च्याङ हुए ? घण्टी में सिर नीचा कर लिया । सरसा के मुंह का भाव क्षणभर में परि- वर्तित हो गया; पर वह अत्रि में अतिथियो कहे अभ्यर्थना में कोई अन्तर नही पहन फेफर : ६१ध्यानसूची