पृष्ठ:कंकाल.pdf/१०३

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राहता इस आश्रप के मिल जाने से उन दोनों की विचार करने का अवसर नहीं मिला। वाघम ने कहा-नहीं, नहीं, इसमे मैं अपना अपमान समझेगा । अष्टी हँसने लगी । याम सञ्जित हो गया; परन्तु लतिका ने धौरे से बाभम को समझा दिमा कि घण्टी को सरला के साथ रहने में विशेष सुविधा होगी। विजय और घटी का अब वहीं छूना निश्चित हो गया। वाभम ने यही रहते जय को भहीनों बीत गर्गे। इसमें काम करने की स्फूति और परिश्रम व उत्कण्ठा बढ़ गई है। चित्र जिये यह दिन भर तूलिका पलाया जाता है। अंटी भीतने पर वह एक बार सिर उठा कर खिड़की से मौल- शिरी के वृक्ष की हरियाली देख लेता है। यह गाविरघाह की एक चित्र अंकित र रहा था, जिसमें नादिरशाह हाथी पर बैठकर उसकी सगाने मांग रहा है । भुगल दरवार के नापसूस चित्रकार नै यद्यपि उसे मूर्ख बनाने के लिए ही यह चित्र यना या; परन्तु इस साहसी आक्रमणकारी के मुख से भय नहीं, प्रत्युत पराधीन सयारी और बढ़ने की एक शंका ही प्रकट हो रखी है। चित्रकार को उसे भयभीत चित्रित मारने का साहस नहीं आ । दम्भवतः उस अधी के शो जाने के बाद मुहम्मदशहू इस दिन को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ होगा । प्रतिलिपि ठीक-ठीक हो रही थी। बाथम उस चित्र को देखकर बहुरा प्रसन्न हो र यो । किंञ्जय ने मजा-पावा में उसका पूरा विश्वास से पता था-वैसे ही पुराने रंग-मसाले, यैसी ही अंकन-ौती थी। कोई भी उसे देखकर यह नहीं कह सकता कि महू प्राचीन दिल्ली-कसम का चित्र नहीं हैं। | आज धि पूरा हुआ है। अभी वह तूलिका हाथ हो रख ही रही मप कि हर पर घण्टी दिखाई दी। उसे जैसे उत्तेजना की एक पूँद मिली, पकान गिट गई । उराने तर अधिों से एण्टी को अल्ड औनन देखा। वह इतना अपने काम गै नवजीन था कि उसे एण्टी का परिचय इन दिनों बहुत साधारण हो गया था। आज उसकी स्टि में नवीनता थे । इराने उल्लास से पुकारा-पण्टी ।' घण्टौ की उदासी पल भर में अज्ञी गई। नइ एक गुना का फून तोड़ती हुई उरा खिड़की के पास था पहुँषी । विजय ने कहा—मेरा चित्र पूरा हो गया। | नौम् ! मैं तो पयर गई थी कि चिश क्रम तक बनेगा । ऐसा भी कोई काम करता है ! नै भन न । विजय बाव, अब आप दूसरा चिम न बनाना—मुझे यहाँ सालर अटै यदी ने रच दिया। कभी धन तो नेते, कि-दो घात भी तो ६४ ; प्रा घामय