पृष्ठ:कंकाल.pdf/१०७

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आमा । और उस समय में बराबर चिल्ला रहा था—'याप ! बाप !' सोग राम- भीत होकर आगने लगे। मैंने देया कि मेरा निश्चित बाद वहीं पड़ा है। उनी माँ अपने साथियों को उसे दिखाकर किच्ची आयरपक काम से दो-नार मिनट के लिए इट गई पौ । उसी समय भगदड़ का प्रारम्भ हुआ था। मैंने झट उस लड़की को बहीं रखकर तमू ने उठा लिमा और फिर कहने लगा-देखो। यह किसी लड़की है ! पर उस भो में कौन किसकी सुनता था। मैं एक सन में अपनी जोपड़ी की और आया-और हुसते-हँसते विधवा की गोद में सड़की और बदले सफा देकर अपने को सिद्ध प्रमाणित कर सका । यहाँ पर मह कहने की आवश्यकता नहीं कि वह रुपी किस प्रकार उस लड़के मै आई । बच्चा भी छोटा था, कनर किसी प्रकार हम लोग निनन मौट आये । विषयी को मैने समझा दिया मा कि तीन दिन तक कोई इसका मुंह न दे सके, नही तो फिर लड़की बन जाने पी संभाबना है। मैं बराबर उसे में पूर्णता रहा और अय उस लड़की की खोज में लगा है पुलिस ने भी खोज की; पर उसका कोई तेनेवाला में मिला। मैंने देखा कि एक निस्संतान पौने की विधवा ने उसे सड़की को पुलिस वालो से पानने के लिए मूग लिया । और मैं अय उसके साये आता। इसे दूसरे स्टीमर पर बैठा पर ही मैंने गाँस सी । संवान-प्राप्ति में मैं उसकी मी सहायक था। मैंने देखा कि यहीं रारला, जो न मुझे भिधा दे रही है, तड़ने के लिए वापर रोती रही; पर मेरा हृदय पयर था, पिपला । लोगों ने बहुत कहा कि सू इस लड़की को से लेकर पाल-पोरा, पर उसे तो गोविन्द चौवाइन की गोद में रहता था। घण्टौ अकस्मात् क उठोक्या कहा ! गोविन्द चौपाइन? हाँ गोबिन्दी, इस चाइन गा राम गोविन्द था ? --जिसने उस लड़की को अपनी गोद में निया ने कहा ।। पण्टो गुप्त हो गई। विषम ने पूछा गया है इप्टी ? घण्टी ने कहा-गोविन्द तो मेरी माता का नाम था। और वह यह कहा वही तुझे मैंने अपनी ही सक-सा माना है ! रिला नै पूछा–बा तुमको गोबिन्दी ने कहीं से पाकर ही पात-पौस कर या किया, यह तुम्हारी भी नहीं थी ? घण्टी नही। वह बाप भी गजमानो या भीष पर जीवन व्यढीत करती रही और मुझे भी दरिंद छोड़ गई। विजय ने कोतूक से कहा-~तन तो घण्टी, तुम्हारी माता का पता लग एकता है ? यों जी दुवै । तुम पदि इनको यही जटकी समस्रो, जिसमा तुमने बघता ६८ : प्रसाद यादृभम