पृष्ठ:कंकाल.pdf/१०८

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किया था, तो या इसकी मां का पता बता सकते हो ? | ओह ! | उरी भलीभाँति जानता है; पर अब वह कहाँ है, नहीं कह सकता। क्योंकि, उस लड़के को पाकर भी वह सुखी न रह सकी। इरो राह में ही संदेह हो गया कि महू मेरी लड़की से तडका नहीं बना, वस्तुतः कोई दूसरा लड़का है; पर मैंने उसे डांटकर समझा दिया कि अब अगर तू किची से कहेगा, तो लड़का पुराने के अभियोग में पुजा पायेगी । यह तडका भो रोते ही दिन विताता । पुछ दिन बाद हरद्वार का एक पंडा गाँव में अमिा । यह उसी विषयी के घर में ठहरा । उन दोनों में गुप्त प्रेम हो गया । अकस्मात् वह एक दिन लड़के को लिए मेरे पास भाई और बोली-दरी नगर के किसी अनाथालय में रख दो, मैं अब हरीर जाती हैं। मैंने कुछ प्रतिवाद न किया, इयोकि इसका अपने गांव के पास से टल जाना ही अच्छा समानता था । मैं सहमत हुआ। और, वह विधवा उसी पंई के साथ हद्धार छली गई। उसका नाम मा भन्दा । अंधा इतना कहकर पुप हुआ। विजय ने कहा—बुई! तुम्हारी यह दशा मै हुई ? वह सुनकर या करोगे । अपनी करने का फल भोग रहा है इसलिए मैं अपनी पाप-कधा सबसे कहता फिरता है, तभी तो इनसे भेंट हुई 1 भीख दो माता, अब हम जाने-अन्धैं ने कहा ।। सरला ने कहा- अच्छा, एक बात बताओगे ? क्या ? उत्त बालक के गले में एक सोने को बह-सा यंत्र था, उसे भी तुगनै उतार लिया होगा । —सरला ने उत्कण्ठा से पूछा। | न, न, न । बहू बालक तो उसे बहुत दिनों तक पहने था, और मुद्दको स्मरण है, यह उद इफ या, जब मैंने उसे अनाथालय में चौपा मा । ठीक हमरा है, वहाँ के अधिकारी से मैंने कहा था-इटै सुरक्षिः रखिए, सम्भव है कि इसकी गई। पहिचान हो, चाया कि इस यातक पर मुझे दो भाई, परन्तु वह या पिशाच फौ दया ।। | सहसा विजय ने पूछा-या आप बता सकत हैं-बहु पैसा मंत्र या ? | पह यंत्र हम लोगो के वंश का प्राचीन रा-फबचे था, न जाने कब से मेरे मुल के राम जनों को यह एक वय को अवस्या तक पहनापा जादा पा । यह एका त्रिकोण स्वर्ण-यंत्र था । कहते-बड़वे सरला के अमू वहुने सगे। अन्धे को हाथ मिली। भह जला गया। सैला उठकर एकान्त में पली गई। पट छ कान तक विजय को अपनी ओर अतिपित करने से पुटकुले छोड़ती रही; परन्तु विनय एकति-चिता-निमग्न बना रहा। हंकार ; ६८ ध्यानसूची