पृष्ठ:कंकाल.pdf/११०

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गहुसा आक्रान्त होकर बॉयम नै महा-कुछ नहीं । * नतीं था कि यह ईसाई हौकर अपनी इदा कर ले, वयोंकि इसके... बात कादपार तता ने पाहा-और यदि मैं हिन्दू हो जाऊँ ? रापम ने फंसे हुए गने से नहा-दोनो हो सकता है । पर, तुम मुदो अमर करोगी नातिका ? | यासंग पैः घले जाने पर सतिका नै देस्रा कि अस्माद् अन्धह के समान यह बात का झोंका आमा और निकल गया । | प्टिी हो रही थी। पत्रिका उच्च अग्नि पोती थी। पाषम के हाथ की हीरे की अंगूठी सहसा घण्ट्री की उँगलियों में तसिंग नै देयी और पह चौंक उठी। लतिका का कोमल हुईग, कठोर कल्पना से भर गया। वह उसे छोड वर चत गई। | गाँदनी निकलने पर घण्टी में आई । अब उसकी निस्सहाय अवस्था स्पष्ट हो गई। बृन्दावन व गजियो गे यो हो किरने वाली घटी, इन कई महीनों की निश्चिन्त जघनचर्या से एक नागरिक महिला बन गई है। उसके रहन-मृद्दन यदल गये थे । हाँ, एक बात और उसके मन में बढ़कने सगी थी बन्धे बथा। भया पशुप बसी म जीवित है। उस मुक्त हुय, चिन्ता हैं उमरावाली संध्या में पवन के समान निरुद्ध हो उठा। वद्द निरौ३ बानिका के समीन फूट-फूटकर रोने लगी। | रारला ने थार उसे पुकारा–घण्टी, क्या मही नैठी रहूंग १–इने मिर नोचा पिये हुए उत्तर दिया-अभी आती हैं। गुरना पनी । कात्र हठी ही, फिर उसी पत्थर पर अपने पैर उमटर अy *ट गई। उगीं इच्छा हुई—ाज ही बह घर छोड़ दें; पर भडू दैा ने ए ईः। बिनम को एक बार अपनी मगोया मुना देने की असे यही । अघिल्ला कर्ण- करते सो गई। | विषम अपने चित्रों को रखकर ब्राह १ : १ दग म मुन कर हा पा । शो के एक बड़े व्यास में गोरा :* हैमदिरा मारने भेज से उठाकर वह कभी-कभी दो नई रे नन गइय हैं शता, मुंह पर ही दौड़ गई। * ** ? नदि स्मात् ठकर बंगले से बाहर था।

घण्टी के पास जा पडा। अ । पृमना । हायों से अपने घुटनै म यों में गि =*: ऑक्षों में पांदनी रात्र में भिमा ६

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