पृष्ठ:कंकाल.pdf/१११

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नेने को उसकी इच्छा हुई, कि वासना से नहीं, वरन् एक सहृदयता है। वह धीरे-धीरे सपने होंठ उसके कपल के पाच तक ले गया। उसको गरम साँसी मी अनुभूति घण्टी न हुई 1 यह पलभर के लिए पुलकित हो गई पर अवै बन्द किये रही । विशय ने प्रमोद । एक दिन उसकै रंग डालने के अवसर पर इसका क्ष- गन करके, घण्ट्री के हुदमे में नवीन गानों की पुष्टि कर दी थी। वह उसी प्रमोद का, ऑक्ष यन्द करके वाहन चरने लगी; परन्तु नशे में चूर विजय ने जाने क्यों जैसे सचेत ही गमा। उसके मुंह में धीरे-से निकल पड़ा यमुना 1- और बहू हट्टकर बड़ा हो गया ! विजय चिन्तित भाद से लौट पड़ा। वह घूमते-घूमते बँगने के बाहर निकल आया, और सड़क पर यों ही पनुन लगा । आधे घण्टे तक वह सा गया पिर इस सड़क से लौटने लगा। बड़े-बड़े वृक्षो को छाया में सड़क पर पद्दती हुई चांदनी को कहीं-कहीं छिपा लिया है। विजय उसी अन्धकार में से चलना चाहता है। यह् चाँदनी में यमुना और अंधेरी से पटी की तुलना करवा हुआ, अपने मन के विनोद का उपकरण जुटा रहा है। सहया उसके कानों में कुछ परिचित स्वर सुनाई पड़े । उस गरण हो अगाउ इमफेया का शब्द । हाँ ठीक है, यही तो है । विनय ठिकर खड़ा हो गया 1 साइकिल पड़े एक सब-इंस्पैवटर और साथ में वहीं ताँगेवाला, दोनों बातें करते हुए आ रहे हैं। सब–यों नपान ! आजका कोई मामला नहीं देते हो ? वगे इतने मामले दिये, मै म बार अपने जी ।। सद०–तो तुम रुपया ही चाहते हो त ? ताँगे-पर यह इनाम रुपयों में न होगा । राय:--फिर चा है। त—पमा आप कीजिए, मुझे ये वह बुत मिल जानी चाहिए। इतना ही करना होगा । सन्न—औ ! गुमने फिर वही बात हो ! तुम नहीं जानतें हो, यह बाथम एम' अंग्रेज है, और उर्फ उन लोगों पर गैह्रानी है। हो, इतना हो सकता है कि तुम उराको अपने हाथों में कार खौ, फिर मैं तुमको फैराने न दूंगा। तगिप तो जान-जोखम का सौदा हैं ! शब-फ़िर मैं क्या थारू? पीछे लगे हो, कभी तो हाथ काग जायगी में सम्हाल तुंग। हां, पह तो बताङ्गो, उस वाईन फा था हुला, जिसे तुम बिन्द बन को बता रहे थे। मुझे मही दिखलाया, बर्यों ? १०२ प्रसाद यामय