पृष्ठ:कंकाल.pdf/११८

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उत्सत ना रामारोह पा । गोस्लामीजी व्यासपीठ गर बैठे थे ! यस्मान प्रारम्भ होने ही वाला था; उसी समय साहब गट से घण्टी पप साध लिए दिगम सभा में आया । आज यमुना दुःखी होकर और मंगल ज्वर में, अपने-अपने कक्ष में पड़े थे। विजय सन्नद्ध था—गोस्वामीजी का विरोध करने की प्रतिज्ञा, श्रेयहेलना और परिहास उसकी आकृति से प्रकट थे । गोस्वामीजी सरस भाव से कहने लगे- उरा समम् अर्यावर्त में एतन्त्र शासन का प्रचण्ड राहत गत रहा था । गुर राष्ट्र में भीव्रग थे साथ यादव अपने नोफतन्त्र की रक्षा में लगे थे । यद्यपि मापन माइनों को बिलासिता जौर पर मन्त्री से गोपान को भी कठि- नाइयां झेलनी पड़ी, फिर भी उन्होंने मुधर्मा के सम्मान की रक्षा की। पाञ्चल मैं कृष्णा का स्वयम्भर मा । अषणा कै बन्न पर पाप उसमे अपना पक्ष- विम लेकर प्रकट हुए। पराभूत होकर कौरवो ने भी उन्हें इन्द्रप्रस्थ दिया । कुप्पा ने ईर्म-राज्य स्थापना का दृढ़-सफ़ल्प लिया था, अतः उतार्थियों के इमन की आवश्यकता थी । भागद्य जरासन्ध मारा गया । सम्पूर्ण भारत में पण्डिंपों को, कृष्ण प्री संरक्षता में धाक जम गई। गृत्ति यशों की समाप्ति हुई। बन्दी रारीवर्ग तथा अतिपशु मुह होते ही कृष्ण की शरण Bए । महान् छ, के साथ जिर हुआ। यह था राजपुर । राजे-महाराजे काँप उठे । अदयानारी प्रयासको की शीतज्वर हुआ। सब उस धर्मराज को प्रतिष्ठा में धारण कर्मकारों के समान नतमस्तक होकर काम मरते रहे। और भी एक बात हुई—यवर्स ने चैसी निर्वासित गोपाल को आश्चर्प में देखा, समवेत महाशनी में अम्पूमा और अभ्यं अधिकारी ! इतना बना परिवर्तन ! राब दौतों ने गली दाये हुए देखते रहे । उसी दिन भारत ने स्योहार किया—गोपात्र पुरुषोत्तम है। प्रसाद में युधिष्ठिर नै धर्म प्राज्य को अपनी भक्तिगत सम्पत्ति ममज्ञ हैं, इसके चत्रिन्पो न मनोरथ सपाल आ–धर्मराज विन्टलुन हुआ; परन्तु पुरुयाराम । उसफा से उद्धार किया, वह तुम कौगो नै मुना होगा--महाभारत की युद्ध- कति: १०