पृष्ठ:कंकाल.pdf/१२२

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मैरी सम्मति है कि इन दोनों अतिथियों को विदा मार दिया जाय । प्यारी मागरेट, तुमको बढ़ा दुःख है ! -मरला नै कहा। नहीं, नहीं, नापम को दु:य होगा ! ---पवरपर क्षतिबा ने कहा । | उसी समय थान में अगर दोनों को पति पर दिया । उाने कहाक्षतिका ! मुझे तुगतै कुछ पूछना है।

  • कृत सुनेगी...फिर भी...मेरा सिर दुःप रहा है...बापग पना गमा । तिका सोचने लगी-तैसी भयानन बात पये स्वीकार करके क्षमा माँगना । बाम ! कितनी निर्तजा है। मैं फिर इमा नयों न फणी 1 परन्तु फर नहीं सकती । आह, मिच्छ के इंफ-सी वे बाते | वह विवाद | भी ऐसा नहीं किया, तुम्हारा रम पा, तुम भूली हो,–मही न फना है? कितनी हुरी बात ! मृ इक बाहो में संकोच नहीं कर सकता--विना पतित...

ति, चलो मी रही । -अल्ला ने कहा। क्षति नै उख पौनबर दैवा-अंधेरा चाँदनी को पिथे जाता है ! अस्तव्यक्त नक्षत्र, काबरी रजनो को टूटी हुई काँधमाशा के टुकड़े हैं, उनमें क्षतिको अपने हृदय का प्रतिविम्ब देखने यी चेष्टा बगे सग। सब नक्षत्रों में विकृत प्रतिदिन ! मह र गई [ झोपती हुई उसने सरला का हाथ पनाह लिया । राजा ने उसे धीरे-धीरे पद तक पहुँचाया। यह जाकर पड़ रही । अखें धन्द किये थी, इर से पोलती न गी । इग्रने प-धावा और शिशु का ध्यान वि। शायक पो गोद में लियै शिशु उसको पार कर रहा है। परन्तु यह मैया-यहू, वमान त्रिशूल-ची भौग विगीपिका उसके पीछे धौ है । ओह, उसकी छाया मैप-शॉपक और शिशु दोनों पर पड़ रही है। पति ने अपने पतनों पर गत दिया, उन्हें पनाया, या सो जाने की मेष्टा झी वारी । पलकों पर अत्यन्त बल देगे से मुंदी अयों के सामने एफ आलोमात्र भने अगा। आंखें फटी जगी। ओह भन्नः ! फ्रभाः पह प्रखर उफाप्त मानक नील हो मला, मेघों के जल में वह वश मोल हो भला, दैयने योग्य-सुदर्शन ऑर्ड ४ इई, नीद थी गई। चमारी का वीरारा दिन था। आज गोस्वामीजी अधिक गम्भीर थे। भाग श्रोता लोग भी अच्छी संख्या में छुपस्थित थे । विजय भी थंटी के साथ ही आपा था । हो, एक अाश्चर्यजनक बात थी-उसके सार आव सरला और सतिका मी गी । युद्दा पदों भी मामा मा। गोस्यामीजी का आश्वान प्रारम्भ हुआ फकास :११३