पृष्ठ:कंकाल.pdf/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

संगीत के स्तर-शहरी मादकता में गम्पित हो रही है। निरंजन ने कहा-- माँछी, उधर ही ले चलो।-नाद की गछि तय हुई। बड़ी ही देर में आगे वाची मात्र के पारा हीं से निरंजन की नाव बी। उच्च एक रात्रि-जागरण से क्लान्त गुयसौ गा रही थी और यौग-बीच में पारा में बैठा हुआ युवक मंशी बजाकर साथ देता, तज्ञ यह जैसे कंधती हुई प्रकृति-जागरण के आनन्द में पुलकित हो जाती । सहा गीत की गति रुकी ! झुवक ने घरबास लेकर वहा--- घण्टी 1 जो बाहते हैं अविवाहित जमग पाशन हैं, वृद्धत है, वे प्रान्त हैं । इत्र का समिलन हो तो ब्याह है। मैं पार्षस्व तुम्हें अर्पण करता हैं और तुम मुझे; इसमें किसी मप्पत्य की आवश्यकता क्यों -मंदों का महत्व कितना ! गडे की, विनिमय की, यदि रभिापना रहीं तो समर्पण ही फैमा । मै स्वतन्त्र प्रेम की सत्ता स्वीकार करता है, समान न करे तो क्या ! | निरंजन ने धीरे से अपने माँझी में माँव दुर ले चलने के लिये कहीं। इतने में फिर युवा ने कहा--तुम भी इसे मानती होगी ? निराकी व कढ़े हुए छिपाते हैं, जिसे अपराध कहकर वान पकष्टकर स्वीकार करते हैं, वही तौ--- जीवन का, यौवन-काल का स सत्य है । सामाजिक बन्धन से अयमी हु आर्थिक कट्रिनाइयाँ, हम घोगों ने प्रेम से धर्म का चैहा गाकर अपना भयानक *म दिखाती है ! नयों, गैया तुम इसे नहीं मानती ? मानती हो लयमय, तुम्हारे उपमहा से यह बात स्पष्ट हैं। फिर भी संस्कार और डि पी राक्षसी प्रतिमा के सामने उमाज क्यों अल्ड रक्तों की बलि चढ़ाया करता है ।। घण्टी चुप थी । दि नशे में शुम रच्ची थी। जागरण का भी कम प्रभाव में था। युवक फिर कहने लगा-देखो, मैं समाज के शासन में थाना प्रज्ञा पा; परन्तु भाइ ! मैं भूल करता हैं । तुम झुठ पोल हो विजय ! रामाज तुमने झाशा है चूका था; परन्तु तुम ज़राहीं जा सुनाकर ममुन्ना का शासनादेश स्वीकार किया। इसमें समाज को क्या दीप है। मैं उस दिन की घटना नहीं भूल सकती, चइ तुम्हारा घोष है। तुम कहोगे कि फिर मैं जब जानकर भी तुम्हारे साथ कप घूमती हैं। इसलिए कि मैं इसे कुछ महत्व नही देतौ । हिन्दू स्त्रियों का समाज ही कैसा है, उसमें कुछ अधिकार हो तब तो उसके लिये कुछ दोषना-विचारना चाहिए। और, जहाँ अन्ध-अनुसरण पारने का आदेश है, जहां प्राकृतिक, स्त्री-मनोचित प्यार कर लेने का जो हमारा नैसर्गिक अधिर है—भैसा कि घटनावा प्रायः स्त्रियाँ किया करती हैं-उसे पियों को दें ! यह कैसे हो, मप्र हो, और मन हो इसकी विचार पुरुप करते हैं। वे फरें, उन्हें रिजाघबनाना है, कौडी-पाई पा रहा १२: प्रसाद समय