पृष्ठ:कंकाल.pdf/१४१

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पत्र पावर किशोरी सूव रोई । श्रीचन्द्र अपनी सारो कल्पनाओं पर पानी फिरते देखकर किशोरी की ही चापलूसी करने लगा। उसनो वह पंजावयाली भन्दा अपनी लड़की को लेकर पाणी गई, क्योंकि ब्याह होना अचंभ मी। वीतये माला दिन बातों को भुला देता है। एव दिन किशोरी ने शहा--- जो कुछ है, हम लोगों के लिए बहुत अधिक है, हाय-हाय घर में क्या होगा। मैं भी अब व्यवसाय करने पंजाब न जाऊँगा। किशोरी ! हुम दोनों यदि सरलता से निभा सके, तो भविष्य जीवन हम लोगो का भुखमय होगा, इसमें कोई दैलू नहीं। किशोरी ने हराकर सिर हिला दिमा। संसार अपने-अपने गुण ही कल्पना पर खड़ा है यह भीषण संसार अपनी स्वप्न की मधुरिमा १ स्वर्ग है । भाग फिशरी को विजय झौ अपघा नहीं, निरंजन की भी नहीं । और, थोचन्द्र को रुपमा के व्यवहाय चौर चन्दा की नहीं। दोनों ने देखा, इन सबवेः बिना हमारा काम चल सकता है, मुख मिल राता है। फिर नंदा करने वसा होगा । दोनों को पुनर्मिलन प्रौढ़ आशाओं से पूर्ण था । धीच ने गृहस्थी सँभाली । मुब अन्नन्य ठीक करके दोनों विदेश घूमने के लिए निकल पड़े । ठाकुरजी की सेवा का 'भार एक मूर्ख के ऊपर थी, जिसे केवल दो रुपये मिलते थे-–३ 'मी महीने भर में । आहा ! स्वार्थ कितना सुन्दर है ! १६२३ । असर प्रामप