पृष्ठ:कंकाल.pdf/१४२

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तब आपने क्या निचय पिमा ? --अरल्या तप्त स्वर में बोलो । घण्टी को जरा माकांड में यया मैना भी बप भी नहो । ---गायम ने कहा- | वामम ! तुम जितने भीतर से क्रूर और निष्ठुर हो, यदि ऊपर से भी वह है, ऐशो मैंने कभी सोचा म्यषहार रावते, सो तुम्हारी गनुप्ता एदोषनार के पई में क्यों छिपाना चाहते हो ! भुइरे । यदि मुशमे दिमाश को तनिक मी मरा न होती, सो में अधिनः गुपी रहतौ-हती हुई सतिका होने का कल्याण होता ! तुम अपनी दुर्यभर की सगो । सच नृप १ ।। मुमती पटपटाते हुए पादरी जन में उच्च शनि को भग किया और आते ही बौला--- सभी का है, जब दोनों एक-दूसरे पर अखि उन्हें अलग हो जाना चाहिए । दश हुभा निवेष छातौ के भीतर सर्प के समान कारा कड़ा है; नव वमने ही शो गह भारत करेगा, कोई नहीं कह सकता। मेरी बन्यो इतका माटे ! करते हो, क्षय | ह पिता ! नाथ ठीक कते है और का वाभग को पो रौ यौकर करे लेने में कोई विरोध न होन्ह चाहिए । ---मागरेट ने कहा । मुझे सध स्वीकार है । अब अधिक सफाई देना में अपमान सहसता है... । चोभम नै धन है का । ठीक है यायम | दुई काई देने, अपने को निरपराध शिश करने क्या अनन्यता है । पुरुष को, स्वतन्त्र पुष्प को, नि साधारण बातों से पाने की सम्भावना नहीं, पारद्ध ! -रजती हुई सरला हा फिर क्षतिका में योनीचलो येटो । पादरी सब कुछ कर जैगा, Pr-ति जीने में बह पटु है ।। उका और अंजा उठकर चली गई । घण्टौ काठ की पुतसौ-र बैठी दुष- आप यह वनप देश ही यो। पादरी ने इराके सिर पर दुतार में हाथ फेड और नया सभ्य शंकास : १३३