पृष्ठ:कंकाल.pdf/१४५

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फतहपुर रोक है अनेरा जाने वाली मुद्रक के नूने अंचल में एक छोटागा जंगल हैं । हुरिमाली दूर तक फैली हुई है। यह खारी नदी एवः ओटी-सी पहाड़ी से टकराती हुई वहुती है। यह पहाड़ी सिलसिला अनेरा और सिपापूर के बीच में है । जनाधारण कुरा सुने धान में नहीं जाते। कहीं-की बरसात पानी बहने वै ब्रुषे नाले अपनी जर्जर कलेवर जाये पड़े हैं। बीच-बीच में पर * दुधडे भिर्बल गालों से सहानुभूति वारते हुए दिखाई दे जाते हैं। वैनल ऊंचीऊँची टेकरियो से उसकी बस्ती व हैं । युझा वे एक घने झुरमुट में लता-गुल्मों से नौ एक गुन्दर झोपॐ हैं । उनमें वःई विभाग है। बहे-बड़े वृद्मा के नीचे पशुओं के मुंह बंध है; उनमें गास, भैंस और घोड़े भी हैं। तीन-चार थायमें कुत्ते अपनी सजग आँखो में दूर-दूर नै पहरा दे रहे है। एक पूरा पशू-विार लिये गाला उस जंगल में मुठ्ठी और निर्भर रहती है। बदन गुजर, उसे प्रान्तं वैः भयानक मनुष्यों का मुरिया गाला का सत्तर बरा वा बुर पिता हैं । अब भी अपने साधियों के साथ चाई पर जाती है । गालों की वम पद्यपि बी के पर है, फिर भी कौमार्य के प्रभाव से बहू किशोरी ही ज्ञान पढ़ती है। | गाला अपने पक्षियों के चारे-पानी का प्रचल कर रही थी । देखा तो एक बुलयुल इस हटे हुए पिंजड़े से निकल भागना चाहता है । अभी फल ही गाना नै उसे पका । अह पशु-पधियों को पकद्धने और पालने में ही तुर थी। उसका थो मेल था । भदन गुजर जब बटेसर वैः मेले में रौदागर धनकर जाता, य इसी गाना फी देख-रेख में पसे हुए वानवर इसे में हुमगा दाम दे जात । गाँजा अपने इर्दै हुए जिथे पो तारों के बड़े और मौदे मुत से बांध ही थे । सहा एवः यनिष्ठ युवा ने मुस्कराते हुए कहा--कितनो नो भड़कर सदैव के लिए वर्धन * जड़ती रहोगी गला ! | हम लोगों को पराधीनता से य मित्रा हैं नये ! इसमें बड़ा मुछ मिलता है । वही पुरा औरो को भी देना चाहता है किसी में पिता, विसा से भाई, ऐसा ही कोई सम्बध जोड़कर उन्हें उनझाना चाहती है; किन्तु पुस, इस जंगली १३६ : प्रसाद पाड्मय