पृष्ठ:कंकाल.pdf/१४६

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गुलबुल में भी अधिक स्वरान्हाता-प्रेमी है। वे राध छुटकारे का अवसर खोज लिया गरते है । देखा न, यात्रा जब होता हैं, चले जाते हैं। कब तक आवेगे तुम जानते हो ? नही भला मैं क्या जानू । पर, तुम्हारे भाई को मैंने कभी नहीं देखा। इसी से वो कहती हैं नये ! मैं शिको पकडक़र रखना चाहती है, ही tग तो 'भागते हैं। जाने कहाँ सिरि-भर का काम उन्ही के सिर पर आ पद्म ६ ! मेरा भाई ? " -हू, वितनी चौड़ी छाती वाला यु' था ! अन चारचार पोडी दो बसो कोच सवारी में ले जाता । आठ-दस शिपाहीं कुछ न कर सकौं । बहू और-शा उनमें से होकर निकल जाता | उराके सिवाचे घोडे सीढिमा पर चढ़ जाते । घोड़े उस घात करते, घडू उनके मरम' की जानता था । तो क्या अल नहीं हैं। | नहीं है। मैं करती थी, बाबा न म माना । एक लड़ाई में बहु भा गया ! अवाले वौच्च शिपायों को उमने उलदार जिया, और न निकल आये । तो क्या मुझे आश्रय देने वाले डाकू है ? | तुम देखत्ते नहीं, में नवरों को पालती हैं, और मेरे वावा उन्हे मले में ने जाकर बेचते है 1 - -माता वा स्वर तीन और गन्देज़नक था । और तुम्हारे मा । ओई ! जइ बढ़ा लम्बी कहानी है, उ न ए 1 --कहकर गाला ३४ गह । एक बार अपने कुते के अंघल से उराने आँख पशी, और एवः श्यामा गो के पास जा पहुँची । गी ने सिर झुका दिया, शाला प्रेमका सिर जलाने लग्दी । फिर उसके मुंह से सटाकर दुलार किया । वह न । गना ने नगा। उसे भी छोड़फर क ाक-भर नी नई का जो पड़ा। इसके बड़े-बड़े अयाली नों अपनी उंगलियों से सुलझानें लग 1 एक बार बह फिर अपने गडू-भिन्न । राप्त हो गई। उधक चुपचाप एक वृक्ष की शड पर जा बैठा । आधा घण्टा न बौता होगा कि दो वैः शब्द सुनकर पाना मुकराने ल । घळा से उतना मुच अन्न हो गया। अश्वारो। मा परे । उनै सबसे आगे उमर में राहरि बरच हा गृह, परन्तु दृ पुरुप था । क्रूरता जमाफी चर्न दाई और मैं के तिरछेपन से टपक रही थी। गोली ने उसके पास पहुँचकर पाईं स जैतरने में सहायता दी । म भीषण गर्दा अप' युवती कन्या को इधर पुरत हो गया । आप भर में लिए न जाने कहाँ छिपी हुई मानवीय कोमलता के मुंह पर इमए ई ! उसने पूछा—सय ठीय है न माला ! ईशान : १३५